इस्लाम में जुमा के दिन और जुमा की नमाज़ का बहुत महत्व है इसे हम सब जानते हैं लेकिन क्या आप को पता है कि पहली बार जब जुमा की नमाज़ अदा की गई. तो इमामत अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम ने नहीं,
एक अंसारी सहाबी हज़रत असअद बिन ज़ोरारा حضرت اسعد بن زرارہ रज़िल्लाह अनहो ने की थी. अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम उस समय तक हिजरत करके मदीना नहीं पहुंचे थे .
यूं तो अरबों में जुमा की अहमियत पहले से थी अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम के जद्दे अमजद काब बिन लूई ने पहली बार इस दिन को मनाया था और इसका पुराना नाम यौमे अरूबा से बदल कर यौमे जुमा रखा था
इस दिन अरब के लोग इकट्ठे हो कर खाते पीते थे पर इस दिन सबसे पहली नमाज़ हज़रत असअद बिन जोरारा की इमामत में हुई
हज़रत असअद बिन ज़ोरारा और हज़रत ज़कवान मदीना के इन दो लोगों ने सब से पहले मक्का में अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम की बातों को सुना.
और इस्लाम कबूल किया फिर वहां से मदीना वापस आ गए और इस्लाम की तबलीग में लग गए. कुछ दिनों में ही बारह लोगों को मुसलमान बना लिया यह बारह लोग मक्का गए और छुप कर अल्लाह के रसूल से मुलाकात की
और उनके हाथ पर बेअत की साथ ही फरमाइश की कि आप हमारे साथ किसी को भेज दें जो हमें इस्लाम सिखाए नबी सललाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत मुसअब बिन उमैर को भेज दिया
हज़रत मुसअब बिन उमैर मदीना में हज़रत असअद बिन ज़ोरारा के घर ठहरे और वही से दोनों लोगों ने इस्लाम की तबलीग शुरू की यहां तक कि एक साल में मुसलमानों की संख्या 72 पहुंच गई
एक बार फिर यह 72 लोग मक्का गए और अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम से छुप कर मुलाकात की आप के हाथ पर बेअत की आप ने उन्हीं में से 12 लोगों को अंसार के अलग-अलग खानदानों का नकीब
और सरदार बना दिया इन बारह सरदारों में हज़रत असअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो भी थे जो बनु नज्जार के सरदार बनाए गए थे यह उम्र में इन 72 लोगों में सबसे छोटे थे
मदीना में मुसलमानों ने बनी बयादा नाम की जगह में एक मस्जिद बनाई और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने लगें इसी मस्जिद में जुमा की पहली नमाज़ अदा की गई
चालीस लोग नमाज़ में शरीक थे और इमाम हज़रत असअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो थे . उसके बाद नबी करीम सललाहो अलैहे वसल्लम हिजरत करके मदीना आ गए और वह जुमा समेत हर नमाज़ की इमामत करने लगे.
अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम को हज़रत असअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो से बड़ी मोहब्बत थी जब आप मदीना पहुंचे तो सबसे पहला सवाल आप का यही था कि असअद बिन ज़ोरारा कहां हैं..
हज़रत असअद बिन ज़ोरारा का बहुत जल्द ही इंतेकाल हो गया अभी नबी करीम सललाहो अलैहे वसल्लम को मदीना में आए सिर्फ नौ महीने हुए थे कि हज़रत असअद बिन ज़ोरारा बीमार पड़े
जिस के बाद इन का इंतेकाल हो गया नबी करीम सललाहो अलैहे वसल्लम खुद इनके जनाजा में शामिल हुए यह अंसार के पहले आदमी थे जो जन्नतुल बक़ीअ कब्रिस्तान में दफन किए गए
हज़रत असअद बिन ज़ोरारा के बाद इनके खानदान के लोग नबी करीम सललाहो अलैहे वसल्लम के पास आए और कहा कि हमारे नकीब ( सरदार ) का इंतेकाल हो गया है
आप कोई दूसरा नकीब बना दें आप ने फ़रमाया कि आज से मैं तुम्हारा नकीब हूं यह कबीला बनु नज्जार वालों के लिए बड़े सम्मान की बात थी रज़िल्लाहो अन्हुम अजमईन