सदियों से बंद गलियों, खिड़कियों को खोलेने के लिए पितृसत्ता से लड़ना कभी किसी के लिए आसान नही रह। इससे बाहर निकल कर अपना एक मकाम बना पाना मुश्लिल तो है लेकिन नमुमकिम भी नही है।
इस बात को मुमकिम बनाती है तसनीम खान। जो अबने हक के लिए जूझ रही है। पत्रकार और साहित्यकार यसनीम खान ने अपनी लेखनी को ही अपने लिए मुश्किल रास्तो का सहारा बना लिया।
पत्रकारिता जोखिमपूर्ण और कड़ी मेहनत का काम है।
लेखन रचनात्मक और बौद्धिक से जुड़ा हुआ है। दोनों ही क्षेत्रो में अपनी पहचान बनाने वाली तसनीम खम राजस्थान के नागौर जिले की डीडवाना तहसील में पली और बड़ी है।
साल 2015 में भारतीय ज्ञानपीठ की नवलेखन प्रतियोगिता में उनका पहला उपन्यास ए मेरे रहनुमा चुना गया और वो पत्रकार के साथ उपन्यासकार हो गई। वह कहती है कि मैने साहित्य को चुना नही वो तो मेरे जिंदगी में शुरू सही था।
उन्होंने आगे बताया है कि मेरी अम्मी का साहित्य से जुड़ाव मुझे विरासत में मिला था। उनकी तरह मै भी किताबो का कीड़ा कही जाने लगी।
आज मेरी दुनिया अलग है जहां मैं किसी भी किरदार से अचानक ही जुड़ जाती हूं। उनकी बातें करती हूं और उनका दर्द को साझा करती हूं। इसके बाद गिर कागजो पर लिख देती हूं। उन्होंने बताया है कि वह अब तक 15 से ज्यादा कहानियों को लिख चुकी हूं।