महारष्ट्र के औरंगाबाद रहने वाले मौलाना कय्यूम नदवी जब स्कूलों में जाकर बच्चो को गुल्लक देतें है तो बच्चो के चेहरे पर खुशी आ जाती है।
एक छोटी सी गुल्लक उनके चेहरे पर खुशी बिखेर देती है। लेकिन यही गुल्लक बच्चो को बहुत दूर तक चलने ज़के लिए तैयार करती है। बच्चे एक महीने तक उसमे पैसे रखते है। इसके बाद बच्चे अपनी पसन्द की किताबें अपने गुल्लक के पेसो से खरदिते है।
अब्दुल कय्यूम नदवी अब तक 37,000 से अधिक गुल्लक में बच्चों को बाट चुके है। मिर्जा अब्दुल नन्दवी बताते है कि इन गुल्लकों में बच्चे 100 से 200 रुपए प्रति माह ही जमा करते है। एक महीने के बाद जब मैं किताबो लो लेकर स्कूल जाता हूं तो बच्चे मेरी बेसब्री से इंतजार करते हैं।
अब्दुल कयुयुम कहते है कि मैं उन बच्चों को यह बात जरूर याद दिलाता हूं कि किताबे खरीदकर पढ़ने की आदत को डाले।
अब्दुल कय्यूम ने साल 2006 में एक बुक हाउस को शुरू किया था। उससे पहले वह साइकिल पर गलियों में घूमकर किताबे बेचा करते थे। यही अब उनकी जिंदगी का मकसद भी बन चुका है।